Saturday, March 19, 2011

इहां कुसल सब भांति सुहाई


होली के मौके पर यह चिट्ठी वाया ई मेल मुझे मिली। आप भी देखिए...

डाक्साब,
जै राम जी की, होली मुबारक हो

इहां कुसल सब भांति सुहाई। उहां कुसल राखै रघुराई।।
आगे राम की इच्छा। आगे समाचार यह है कि अबकी होली परदेस में ही बीत रही है। अपने अवध इस बार भी नहीं जा पा रहा हूं। अब जबकि इस होली हम आपको पत्र लिख रहे हैं, तब हमारी चिंताएं भी बदल चुकी हैं। इस बार अम्मा के हाथों सरसों का उबटन (बुकवा) नहीं लग पाया। ‘वायफी’ ने शहनाज का मसाज पैक लगा दिया इस बार। जापान त्रासदी हमारी ग्लोबल चिंता है तो अम्मा की आंख का मोतियाबिंद का आपरेशन हमारी ‘इंडीविजुअल फिकर’। अबकी हमें इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि पड़ोसी गांव की होलिका हमारे गांव से ज्यादा हहाहूट है। हम तो इस बात पर अफसोस कर रहे हैं कि हमारी हाउसिंग सोसायटी की छोटी-सी होलिका कितने टन कार्बन का उत्सर्जन कर रही है। अबकी हमने अपने बाल सखाओं की भी सुधि नहीं ली। ये अलग बात है कि आधा दर्जन अखबारों के संपादकों को एसएमएस भेजे। अपनी भौजी के हाथ की बनी गुझिया हमें ‘फैटी’ लग रही है। बॉस की बीवी के फ्रिज में रक्खी फैट फ्री गुझिया हमें भा गई।
सरसों के खेतों और आम के बौर से छनकर आती हवा हमें मदहोश नहीं कर रही है। हम तो स्कॉच गटककर टल्ली हैं। न रंग का नशा, न भंग की खुमारी। बुरा न मानना, आप भी सेलिब्रेट करना।

ये न सोचना कि हम ऐसे हो गए हैं।
बस हम थोड़ा प्रोफेशनल हो गए हैं।
आपको पता ही है ये टुच्ची जरूरतों के बारे में
और हां, कोई हमारे गांव-गिराव का मिल जाए तो उसे ये चिट्ठी मत दिखाना, क्योंकि हमारी गांव में बड़ी ‘इज्जत’ है। और वैसे भी हम हैं नहीं ऐसे। मन की बात बताएं तो हमारे दिल में भी एक होलिका फुंक रही है रह-रहकर...आपकी कसम।
थोड़ा लिखा ज्यादा समझना, कलम की रोशनाई फीकी पड़ रही है।
एक बार बोलो..जोगी रा सा रा रा रा रा रा .......

आपका
पवन

1 comment:

Unknown said...

होली के शुभ अवसर पर आपकी ये प्रेरक post अच्छी लगी,
सार्थक संदेश देती हुई कविता के लिए एवं होली की शुभकामनाये

jai baba banaras....