Sunday, November 28, 2010

मेरे घर में कबूतर

कबूतरों के लिए कोई जगह नहीं थी उस कालोनी में। कई जगह से निराश होने के बाद कबूतरी ने पवन के घर में अपने लिए जगह तलाशी। कोई भी सुनकर हंसेगा कि मेरी इस कबूतरी को लेकर देर-देर तक बातें होती थीं। मसलन अंडे का रंग अब कैसा है, क्या आज कबूतरी आई थी, क्या तुम उसे दाने डालना तो नहीं भूल गए। एक उम्मीद जन्म ले रही थी। मैंने कहा था अंडे फूटें तो मुझे जरूर बता देना.....पिज्जू पैदा हुए तो मुझे सूचना मिली। सब खुश थे। नन्हें प्रत्यूष न जाने कितनी बार उनके घर में झांक कर चले आते कि सब कुछ ठीकठाक है या नहीं..पिज्जू ने एक दिन पंख फैलाए और उड चले। अब घर उस पिज्जू के बिना बहुत उदास है। पवन ने यह कबूतर कथा लिख भेजी है....फैजाबाद के गांव मोदहा के रहने वाले पवन तिवारी दिल्ली में खबरनवीस हैं। वह कबूतर कथा का एक टुकडा और भेजेंगे....


बस, इतना ही नाता था उस उस अंडे से? अंडे से निकला मांस का टुकड़ा अब
सुंदर सी चिड़िया के आकार में ढल चुका था। वह उड़ चली, अपने गहरे काई के
रंग जैसे डैनों के सहारे। अनंत आकाश में फड़फड़ करते। नन्हा प्रत्यूष
आसमान की ओर ताकता रहा। फिर उसने गमले के उस कोने की ओर देखा। जैसे
सूनापन उसे कचोट रहा हो। उसने जोर की आवाज लगाई एइइइइ..पिज्जू,,लो
चॉकलेट। अच्छा तुम्हें चॉकलेट नहीं पसंद तो लो चावल के दाने। पिज्जू नहीं
आया...। अनमना सा मुंह बनाकर अब वह मेरे पास सवालों के गुच्छे लेकर खड़ा
था। पापा पिज्जू फिर आएगा ना? मुझे पता है ये दिल्ली के कबूतर हैं। फिर
भी मैंने अपने पांच साल के बेटे को दिलासा दी। हां, क्यों नहीं आएगा। फिर
मैं भी धक से रह गया। अभी तीन दिन पहले ही पत्नी से मैंने कहा था, परेशान
न हो अब ये उड़ने वाली है। उन्हें बस एक दिक्कत थी, कबूतरों की बीट से।
बड़बड़ाती रहती, मैं इसे कामवाली से कहके फिंकवा दूंगी हां, मर जाएगी
महोखनी। पर मैं और प्रत्यूष उस वक्त वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट बन जाते।
पत्नी हथियार डाल देतीं। आज गमले का खाली कोना देख उनके चेहरे पर भी
अनमनस्कता साफ पढ़ी जा सकती है। मैंने नश्तर चुभोया...चलो भई अब बालकनी
साफ रहेगी। वे मौन रहीं,,फिर मैंने कुरेदा..वे कुछ न बोलीं,,मैंने अखबार
से मुंह निकाला, वे ढुलके हुए आंसू अपने आंचल से पोंछ रही थी।
पिछले दो महीने से मेरा घर मिनी जू (चिड़्याघर)बन गया था। प्रत्यूष
अपनी स्कूल वाली मैम को बता आया था। मैम मेरे घर में अंडा है। मैम बोली
थी, वो तो मेरे फ्रिज में भी रखा है। अरे...नहीं,,मैम वो नेस्ट में है।
पिजन ने दिया है। डैड बता रहे थे, इसमें से बच्चा निकलेगा? सच. फिर उसने
अपने दोस्तों को भी बताया। अगर आपने भूतनाथ फिल्म देखी हो तो जैसे मंकू
ने एंजल वाली बात पूरे स्कूल में फैलाई थी, बेटे ने भी कुछ वैसा ही
कारनामा किया था। फैजाबाद वाले घर पर बात होती तो बड़े भइया पूछते कबूतर
के बच्चे का क्या हाल है? बरेली में डॉक साहब से भी मैं हालचाल बता ही
डालता।..कितना रच बस गया था ये पिज्जू।
मुझे याद आ रही है। पिज्जू की फ्लैश बैक स्टोरी। चलते हैं अतीत की ओर।
सितंबर खत्म होने को था। पत्नी मायके गई थीं। घर में मैं अकेला। आदरणीय
काशीनाथ सिंह की शैली में कहें तो फटक...गिऱधारी,, ना लोटा ना
थारी।..गमले का खाली कोना देख कबूतर के एक जोड़े ने उसे घोसले के लिए
तजवीज लिया। काही रंग कहे या सिलेटी। पीछे पूंछ की ओर दो स्याह रंग की
धारियां। ये दोनों धारियां मुझे छुटपने से ही बेहद लुभाती थी। मैं दरवाजे
की जाली से बालकनी की ओर झांक रहा हूं। एक कबूतर आया, उसकी चोंच में
तिनका था। दूसरा आया। उसने पास पड़ी झाड़ू से तिनका अपनी चोंच में दबाया।
फिर गमले के कोने रख दिया। ये काम जल्दी-जल्दी होने लगा। वैसे जहां तक
मेरी जानकारी है, कबूतर को घोंसले बनाने के मामले में बेशऊर कहा जाता है।
घोंसले तो साहब बया बनाती है। तभी तो वीवर बडॆ बोलते हैं। कोयल के बारे
मे कहते हैं कि वो सयाने कौए को ही मामू बनाकर उसके घोसले में अंडे दे
देती है। कौएं मियां उसे सेते भी हैं। बाद में अपनी बेवकूफी पर पछताते
हैं। चलो खराब ही सही कबूतर का कम से कम अपना तो ठौर है। न धोखा, न फरेब।
कबूतरों का जोड़ा। घोसले का मुआइना करता..फिर इत्मीनान होकर एक कबूतर
दूसरे की चोंच को अपने मुंह में कसकर पकड़ लेता. उसे ऊपर नीचे करता। अब
समझ में आया..चोंच लड़ाने वाला जुमला कहां से निकला। अगली दोपहर मैं सोकर
उठा। गमले के पीछे घोंसले में एक कबूतर दम साधे बैठा है। शायद यह मादा
है। यानी बैठी है। मैंने झांका. दो अंडे दिखे। सफेद, लेकिन लालिमा लिए।
जैसे सफेद प्लास्टिक के खोल मे छोटे टिमटिमाते बल्ब लगे हों। जैसे मेरा
घर भर गया हो। मोबाइल से फौरन पत्नी को बताया। वे खुश नहीं हुईं, नाराज
भी नहीं हुई। शायद गंदगी को लेकर सशंकित रही होंगी। प्रत्यूष बेहद खुश
हुआ। फोन से रोज मुझसे अपडेट लेता। ननिहाल से लौटा तो बस दिन भर ताकझांक
करता रहा घोसले में। कभी कबूतरी उसे पंख फड़फड़ाकर डरा भी देती। वैसे
मीडिया की जुबान में कहें तो बेटे के लिए ये ब्रेकिंग न्यूज थी। उसने दिन
भर इस खबर पर खेला। पहले फ्लैश किया। फिर पूरा पैकेज चलाया। वीओ भी उसका।
स्क्रिप्ट भी उसी की। बस डायरेक्टर मैं था। बगल वाली भाभी जी ने तो
बाकायदा एक्सपर्ट कमेंट भी दिए
खबर तो अभी चलनी बाकी है। अभी इसे पूरी टीआरपी नहीं मिली। डायरेक्टर का
दिमाग बड़ा शातिर है। टारगेट आडिएंस तक खबर पहुंचा के ही दम लेता है। न
भइया जी। संपादक साहब भी तो ऐसे ही हैं। कहते हैं सेलेबल खबरें छापो बस।
मरने खपने में ज्यादा दम नहीं है। हां तो बात टारगेट आडिएंस की हो रही
थी। सामने वाले फ्लैट में कॉलसेंटर की लड़कियां रहती थीं। मैने अपने
रिपोर्टर के जरिए उन तक खबर पहुंचवा दी। काम हो गया लगता है। एक स्लीवलेस
लड़की वाइल्ड लाइफ प्रेमी निकली। घूरने की मेरे आदत से कुढ़ी रहने के बाद
भी वो बोल बैठी..वॉव..वॉव ओ माई गॉड कहां हैं एग्स। फिर मैंने कायदे से
ब्रीफ किया। कहा, घर आकर आप अंडे देख भी सकती हैं। छू भी सकती हैं। किचन
में मटर छील रही पत्नी को ये बड़ा नागवार लगा। उन्होने धीमे से उस लड़की को कोसा।
शायद आवारा कहा। वो भी कहा जो विभूति जी ने कहा था, लेखिकाओं के बारे में। मैंने भी अपने
चरित्र का दोगलापन दिखाया, खीस निपोरते हुए बोला आवारा तो हई हैं, बताओ
अंडे वाली बात बाद में तुमसे भी तो पूछ सकती थीं। हाहाहाहा...। कमाल है
भाई।
क्रमशः

3 comments:

umashankar singh said...

apne ko dogla kahne ka sahas kam hi logon me hota hai! vo bhi itne achhe bhasa ke khiladion me to aur bhi kam.
yhan ye sahas aur huner dono rupon me hai.
-uma

Anuj Srivastava said...

आप भाग्यशाली हैं। ईश्वर ने आपको सशक्त अभिव्यक्ति का उपहार दिया है। कबतूर के माध्यम से आपने बचपन के उन पलों को छूने की कोशिश की है, जिसे मेरे जैसा आम आदमी सिर्फ महसूस कर सकता है। ईश्वर आपकी कलम को कभी कुंद न पड़ने दे। इसी विश्वास के साथ ऐसे ही लिखते रहने की ढेरों शुभकामनाएं।
-अनुज

लल्लनटाप said...

print le liya hai kal comment dunga.. ye word verification hata dijiye..